अतिथि की कौन कहे, तिथि पर भी, पाहुन से मिलने में घबराती है। अतिथि की कौन कहे, तिथि पर भी, पाहुन से मिलने में घबराती है।
गाय हमारी संस्कृति में माता समान है क्या हम अपनी संस्कृति की रक्षा भी न करे अब ? गाय हमारी संस्कृति में माता समान है क्या हम अपनी संस्कृति की रक्षा भी न करे अब ?
मुझे दिखने लगा अपरहण मेरी संस्कृत और विरासत का मुझे दिखने लगा अपरहण मेरी संस्कृत और विरासत का
वाकई देश बदल रहा है। पाश्चात्य संस्कृति का, वो अनुसरण कर रहा है। वाकई देश बदल रहा है। पाश्चात्य संस्कृति का, वो अनुसरण कर रहा है।
आखिर अपने देश की संस्कृति का सवाल था। आखिर अपने देश की संस्कृति का सवाल था।
धन्य धन्य मांँ भारती, धन्य है इसकी संस्कृति। धन्य धन्य मांँ भारती, धन्य है इसकी संस्कृति।